The Life Changing Power of Sophrology
सोफ्रोलॉजी वेस्टर्न मेडिसिन और ईस्टर्न मैडिटेशन तकनीक का एक दिलचस्प मिश्रण हैं.
हम कितनी भी कोशिश कर लें अपनी रोज़मर्रा के जीवन की कठिनाईयों से पीछा नहीं छुड़ा पाते. अपने परिवार और काम के बीच बैलेंस बनाते-बनाते कई बार हमारी दिनचर्या इतनी व्यस्त हो जाती है कि हमें लगता कि बस अब हमसे और नहीं होगा, या फिर हम किसी शारीरिक बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं जिसके कारण हमारी सारी योजनाओं पर पानी फिर जाता है. इन सबके बीच छोटे-छोटे काम जैसे बाज़ार से सामान लाना या फिर किसी अधूरे ईमेल को पूरा करना भी बहुत चुनौतीपूर्ण लगने लगता है. छोटी हों या बड़ी ये सभी चुनौतियाँ हमें तनाव, चिंता और डिप्रेशन से भर देती हैं. लेकिन चाहे चुनौतियाँ कितनी भी कठिन क्यूँ ना हो उनसे निकलने का रास्ता जरुर होता है. सोफ्रोलॉजी के आसान एक्सरसाइजों को सीख कर आप बस, अपनी साँसों को महसूस कर, मुश्किल से मुश्किल घडी में भी खुद को पॉजिटिव रख कर चिंताओं से बच सकते हैं.
कई बार डॉक्टर के पास जाने से भी हमारी बीमारी ठीक नहीं होती. आप टेस्ट करवाते है, दवाईयाँ भी लेते हैं फिर भी आप अच्छा महसूस नहीं कर पाते.
इसका मतलब है कि अब ये आम दवाईयाँ कुछ नहीं कर पाएंगी और आपको इस बार अपने लिए कुछ नया सोचना होगा. लेकिन क्या? सोफ्रोलॉजी, के बारे में आपका क्या ख्याल है? एक ऐसी तकनीक जो शरीर और दिमाग के बीच बैलेंस बनाते हुए आपको स्वस्थ और खुशहाल रखेगी.
सोफ्रोलॉजी शब्द अपने आप में बैलेंस का सिंबल है. सोफ्रोलॉजी एक ग्रीक शब्द सोफ्रोसिने से बना है, इस शब्द को सबसे पहले ग्रीक फिलोसफर प्लेटो (plato) नें इस्तेमाल किया था जिसका मतलब है शरीर, आत्मा और दिमाग के बीच ताल-मेल और बैलेंस.
1932 में पैदा हुए स्पैनिश डॉक्टर अल्फोंसो केसेदो नें सोफ्रोलॉजी की खोज की. मैड्रिड में मेडिसिन की पढ़ाई करते हुए केसेदो को वेस्टर्न मेडिसिन की सीमाओं का एहसास हुआ. खासतौर पर मानसिक अस्पताल में काम करन के दौरान, जब उन्होंने मानसिक रोगियों को इलेक्ट्रिक शॉक देते हुए देखा, तब वो बहुत निराश हुए. उन्हें ये एक हिंसक तरीका लगता था क्यूंकि कई बार पेशेंट कोमा में भी चले जाते थे. उन्होंने खुद से सवाल किया कि आखिर दिमाग को ठीक करने के लिए उसे इतना हिलाने कि क्या जरुरत? क्या और कोई रास्ता नहीं है?
उनके मन में ये बात साफ़ हो गयी थी कि वेस्टर्न मेडिसिन हर बीमारी का इलाज़ नहीं कर सकती खासतौर पर मानसिक बीमारी का तो बिलकुल नहीं. इसलिए उन्होंने कुछ नया सोचना शुरू किया .
1965 में वो भारत और जापान जैसे देशों की यात्रा पर निकल गए. इन देशों में सालों तक उन्होंने पूर्वी देशों के इलाज़ के तरीकों को समझा.वहाँ उन्होंने योगियों, ऋषियों और डॉक्टरों के साथ योगा सीखा. उन्होंने महसूस किया कि कैसे साँसों को अपने कंट्रोल में करके अपनी कॉनशियसनेस को जगा सकते हैं. वो धर्मशाला गए जहाँ उन्होंने तिबतन बुद्धिज्म के इलाज़ के तरीकों को सीखा. फिर जापान में उन्होंने ज़ेन बुद्धिज्म की मैडिटेशन की कला को सीखा.
स्पेन वापस लौटने पर वो अपने वेस्टर्न मेडिसिन के ज्ञान को योगा, मैडिटेशन, न्यूरोलॉजी, साइकोलॉजी और साइकाइट्री के साथ मिलाने में लग गए. इस मिश्रण का नतीजा था सोफ्रोलॉजी.
1960 से 1980 के दशक तक अपनी कला को और निखारने के लिए उन्होंने इस तकनीक की प्रैक्टिस बहुत सारे पेशेंटों पर की. उन्होंने सांस लेने की तकनीक, मैडिटेशन और विज़ुअलाइज़ेशन को मिला कर कई गाइडेड एक्सरसाइजेस को तैयार किया और उन्हें सोफ्रोलॉजी के 12 लेवलों में बाँटा, इन लेवलों को पार करते हुए आप अपने अन्दर झाँक कर अपनी कॉनशियसनेस की खोज कर सकते हैं और उसे निखार सकते हैं. इन 12 लेवेलों में महारत हासिल करने में आपको कम से कम 1-2 साल लग जायेंगे. लेकिन, बेसिक और लेवल 1 सोफ्रोलॉजी भी अपने आप में आपके लिए काफी है. इन दोनों को रोज़ मर्रा के जीवन का हिस्सा बनाकर ही आप काफी हद तक अपनी जिंदगी को सुधार सकते हैं.
और सबसे अच्छी बात है कि ये किसी भी लाइफस्टाइल, दिनचर्या और फिटनेस लेवल के व्यक्ति के लिए आसान है.
अपने शरीर और दिमाग के कनेक्शन को फिर से जोड़ना सोफ्रोलॉजी का पहला और सबसे जरुरी कदम हैं.
किसी ईमारत को बनाते समय सीधा उसमें दीवारें या खिड़कियाँ नहीं जोड़ते, सबसे पहले उसकी नीव बनायी जाती है. है ना? चाहे कंस्ट्रक्शन हो या और कोई भी काम सबसे पहले एक मजबूत नीव का होना बहुत जरुरी है, और सोफ्रोलॉजी में भी कुछ ऐसा हीं है. इससे पहले कि आप सोफ्रोलॉजी के 12 लेवलों के बारे में जानें सबसे पहले आपको बेसिक लेवल जो कि सोफ्रोलॉजी की नीव है, उस पर मास्टरी करनी होगी. इसलिए इस लेवल को फाउंडेशन प्रैक्टिस कहा जाता है. इस लेवल में आप अपनी सेंसेस यानी इन्द्रियों पर कंट्रोल करना सीखते हैं, जिससे आपका शरीर आपके दिमाग के साथ कनेक्ट होता है और आप एक रिलैक्सड-अलर्ट स्थिति में आ जाते हैं. ये एक्सरसाइज आपकी कॉनशिअसनेस को मजबूत बनती है. आपको एक ऐसी शक्ति का एहसास होता है, जो आपकी शारीरिक और मानसिक पहलुओं को जोड़ती है.
फाउंडेशन प्रैक्टिस तीन एक्सरसाइजों पर आधारित है- बॉडी स्कैन, क्लीयरिंग ब्रेथ, ट्यूनिंग टू द वाइटल पॉवर. क्लीयरिंग ब्रेथ यानी अपनी साँसों को महसूस करते हुए अपने सारे शारीरिक तनावों को दूर करना. ट्यूनिंग टू द वाइटल पॉवर यानी अपनी कॉनशिअसनेस के अन्दर झांकना. लेकिन इन सबसे पहले बॉडी स्कैन करना बहुत जरुरी है.
बॉडी स्कैन के लिए सबसे पहले आप एक आरामदायक कुर्सी पर बैठ जाएँ. अपना समय लेते हुए धीरे-धीरे आप कुर्सी पर अपने शरीर के भार को महसूस करें. इस बीच लगातार सांस लें और सांस छोडें. फिर धीरे से अपने मन की आँखों से अपने शरीर के हर एक भाग को अच्छे से देखें. सोफ्रोलॉजी के अनुसार शरीर के पांच भाग है, सिर और चेहरा मिलकर पहला भाग बनाते है, कंधे, गर्दन और हाथ दूसरा, छाती तीसरी, पेट का ऊपरी हिस्सा चौथा है और निचला पेट, पेलविस और पैर पांचवां हिस्सा बनाते हैं.
बॉडी स्कैन में आप अपने शरीर के हर भाग से धीरे-धीरे गुजरते हुए ये महसूस करने की कोशिश करते हैं कि कहीं किसी अंग में कोई तनाव तो नहीं. कुर्सी पर बैठे हुए, गहरी साँसें लेते हुए आप अपनी साँसों की शक्ति से अपने शरीर के हर अंग को रिलैक्स करने की कोशिश करें.
आपके शरीर और दिमाग को जोड़ने के लिए ये एक्सरसाइज काफी कारगर है. अपने दिमाग को अपने शारीरिक एहसासों से जोड़ते हुए बॉडी स्कैन आपको अपने शरीर के बारे में जागरूक होने और उसे तनावमुक्त करने में मदद करता है. ऐसा करने से आप ऐसी कंडीशन में पहुँच जाते हैं जहाँ आपके एहसास और आपकी सोच दोनों आपको कॉनशिअसनेस की एक नयी राह पर ले जाते हैं.
एक बार आप इस एक्सरसाइज को कर के देखें आपको अपने आप में बहुत फर्क महसूस होगा. इसे करने के बाद आपका शरीर तो रिलैक्स हो जायेगा पर आपका दिमाग एकदम अलर्ट रहेगा. इस स्थिति को लेखिका नें रिलैक्सड-अलर्ट स्टेट का नाम दिया है और अगर सोफ्रोलॉजी की भाषा में समझें तो इसे सोफ्रोलिमिनल स्टेट कहते है. कितना अच्छा एहसास है, है ना? आप भी ट्राय करें.
सोफ्रोलॉजी का पहला लेवल आपके शरीर और दिमाग के बीच पॉजिटिव बैलेंस बनाता है. हम जिस शरीर में रहते हैं जिसका इस्तेमाल 24 घंटे करते हैं, असल में हम उसका कितना ख्याल रखते हैं, उसकी कितनी बातें सुनते हैं?
परिवार की जिम्मेदारियों, काम के तनाव और तेज़ दौड़ती ज़िन्दगी की रफ़्तार के कारण हम अपनी हीं उलझनों में उलझ कर रह जाते हैं. हम ये बात बात भूल हीं जाते हैं कि हमारा परेशान दिमाग भी हमारे शरीर का एक हिस्सा है और उसकी देखभाल भी हमारी जिम्मेदारी होती है.
और यहीं सोफ्रोलॉजी का काम शुरू होता है. सोफ्रोलॉजी के पहले 4 लेवेलों को डिस्कवरी साइकल कहते हैं यानी अपने दिमाग और शरीर के बीच बैलेंस की खोज, दुसरे 4 लेवेलों को मास्टरी साइकिल कहते हैं यानी इस बैलेंस को बनाये रखने में महारत हासिल करना, और आखरी 4 लेवेल्स को ट्रांस्फोर्मटिव साइकिल कहते हैं यानी अपनी कॉनशिअसनेस में बदलाव लाना.
लेकिन, सोफ्रोलॉजी की कला का फायदा उठाने के लिए जरुरी नहीं कि हमें सभी 12 लेवेलों का ज्ञान हो. मात्र पहले हीं लेवल को अपने जीवन का हिस्सा बना कर आप अपने जीवन में काफी बदलाव महसूस कर सकते हैं. अपने शरीर को थोडा सा हिला कर और अपनी साँसों की लय पर नियंत्रण प्राप्त कर के आप अपने शरीर और दिमाग को कनेक्ट कर सकते हैं. ये कनेक्शन हमें अपने घावों पर खुद मरहम लगाने की शक्ति देता है, हमें उन सभी तनावों को खुद से दूर करने की कला सिखाता है जो हमें खुश रहने से रोके हुए हैं.
जैसे लेवल 1 की सर को घुमाने वाली एक्सरसाइज यानी हेड रोटेशन को ही ले लें. ये एक्सरसाइज हमारे शरीर के पहले भाग यानी सिर और मूँह के लिए है. इसे करने के लिए सबसे पहले आप सीधे खड़े हो जायें फिर अपनी गर्दन को सामने की तरफ सीधा रखते हुए सांस अन्दर लें, और सर को पहले राईट फिर लेफ्ट घुमाएं, जब सांस छोड़ने का मन करें तो सर को वापस सामने की ओर ला कर छोडें. सामने की ओर मुँह कर के अपने शरीर के पहले भाग सिर और मूँह के एहसासों को महसूस करें. हो सकता है शुरू शुरू में आपको सांस रोके रखने के कारण थोडा अजीब लगे. लेकिन बाद में धीरे-धीरे आपको रिलैक्स महसूस होने लगेगा और आपको उन सभी तनाव के कारणों का पता चलेगा जिसके बारे में आप पहले अनजान थे.
इसे दोहराते हुए सामने की ओर मूँह करके साँसों को छोड़ते जायें. इस एक्सरसाइज को रोज़ करने के बहुत से फायेदे हैं. गहरी साँसों के साथ सिर को हलके हलके घुमाने से हमारे दिमाग में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और हमारा फोकस भी बढ़ जाता. इस तरह की एक्सरसाइज ना केवल हमारे मन और शरीर को जोड़ता है बल्कि उनमें एक पॉजिटिव बैलेंस भी बनता है.
मजे की बात ये है कि हेड रोटेशन जैसी बेसिक लेवल 1 एक्सरसाइज आपके केवल 15 मिनट ही लेगी. इन एक्सरसाइजेस को अपने जीवन का हिस्सा बनाने पर ये हमें एनर्जी देंगी और हमारे मूड को अच्छा बनाते हुए हमारा फोकस बढ़ाएंगी.
द लाइफ-चेंजिंग पावर ऑफ़ सोफ्रोलॉजी, 2018, में आई ये किताब, हमें सोफ्रोलॉजी की जिंदगी में बदलाव लाने वाली शक्तियों की गहरायीयों में ले जाती है. सोफ्रोलॉजी अपने आप में एक अद्भुत उपचार पद्दति है जो साँसों की लय, मैडिटेशन और क्रिएटिव विजुअलाईजेशन की मदद से तनाव को कम करते हुए रोज़मर्रा की समस्याओं को सुलझाने में आपकी मदद करती है. सोफ्रोलॉजी के आसान तरीके किसी भी लाइफस्टाइल और आपकी व्यस्त दिनचर्या में फिट हो सकते हैं. बस रोज़ कुछ मिनटों का अभ्यास और आप एक स्वस्थ, खुशहाल और कल्याणकारी जीवन जी सकते हैं.
ये किताब किसके लिए है?
- तनाव और चिंता से जूझ रहे लोगों के लिए.
- स्वस्थ रहकर कल्याण के रास्ते पर चलने की चाह रखने वालों के लिए.
- ऐसे माता-पिता जो परिवार की मांगें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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